Wednesday 19 August 2020

छत्तीसगढ़ की मिट्टियाँ , Soils of chhattisgarh, chhattisgarh ki mittiya, cg mitti , cgpsc

 





 

****** छत्तीसगढ़ की मिट्टियाँ *****

 

 

* छत्तीसगढ़ भारत के प्रायद्वीपीय पठार का भाग है , जहां  पर  अवशिष्ट  मिट्टियाँ  पाई  जाती है।  उत्पादकता  की दृष्टि  से मृदा  में  नाइट्रोजन , फास्फोरस  व पोटैशियम  तत्वों  की आवश्यकता  होती है।  वन राज्य  में पाई जाने वाली मिट्टियों की संरचना  ,  संगठन  , रंग  तथा गुण  के आधार  पर इन्हे  पाँच भागों में  बाटा गया है, जो निम्नलिखित  हैं :-

1.   लाल -पीली  मिट्टी 

2.   लाल  बलुई (रेतीली ) मिट्टी 

3.   लाल दोमट  मिट्टी 

4.   लैटेराइट  मिट्टी 

5.   काली मिट्टी

 

 

 

     ******** 1. लाल -पीली  मिट्टी *****

  

* इस मिट्टी का विस्तार  राज्य में मध्य  भाग  तथा उत्तरी  भाग में है। 

* राज्य के सर्वाधिक  भाग (55 -60 %) में  लाल -पीली  मिट्टी  पाई जाती है। 

* यह मिट्टी अधिकतर नदियों के  निचले ढलानों पर पाई जाती है। 

* स्थानीय भाषा में इसे  मटासी  मिट्टी अथवा  डोरसा भी कहते है। 

* इसकी  उत्पत्ति अपरहित  गोण्डवाना  तथा  कड़प्पा  चट्टानों से हुई है। 

* इसमें बालू और चूने की मात्रा तथा आयरन आक्साइड  की  अधिकता होती है। तथा यह धान की खेती के लिए उपयुक्त है।  

* इसमें ह्यूमस ( जीवाश्म ) तथा नाइट्रोजन  की  कमी होती है ,जिसके कारण  इसकी उर्वरता  अधिक  नहीं होती।  इसका  ph  मान 5. 5 -8. 5  होता है। 

* इस मिट्टी का पीले रंग होने का कारण  फेरिक  ऑक्साइड  तथा फेरस ऑक्साइड  का जलीयकरण   होना है। 

* इस मिट्टी में लोहा , सामान्य  एल्युमिनियम  ,नाइट्रोजन  तथा  पोटाश  तथा ह्यूमस बहुत कम मात्रा में होती है। 

* यह मिट्टी खरीफ फसलों के लिए उपयुक्त है, क्योकिं वर्षा के कारण फसलों को निरंतर जल मिलता  रहता  है।  

* इस प्रकार की  मिट्टी में  अलसी , धान , तिल , मक्का ,ज्वार , कोदो  और कुटकी  आदि फसलों  का उत्पादन  किया जाता  है। ऐसी  मिट्टी का विस्तार  सरगुजा  , जशपुर , कोरिया , जांजगीर , रायगढ़ , महासमुंद , रायपुर ,कवर्धा , कोरबा ,दुर्ग , बिलासपुर , धमतरी  आदि में है।  

 

 

 

 

 

****** 2.  लाल  बलुई (रेतीली ) मिट्टी ******

 

* यह पाट प्रदेश तथा बस्तर के ढलानों पर  पाई जाती  है। यह नदियों की घाटियों की तुलना में  कम उपजाऊ  होती है। 

* लाल बलुई  मिट्टी को स्थानीय  भाषा में  टिकरा कहते है।   यह उत्तरी  पहाड़ी क्षेत्रो में  पाई जाती है।  तथा स्थानीय  भाषा  में इसे  छावर  कहा जाता  है।  

* यह राज्य के लगभग 25 - 30 % भाग में पाई जाती है।  यह मिट्टी वनीकरण के लिए सर्वोत्तम है।  इसकी प्रकृति अम्लीय होती है। 

* इस का  विस्तार  दुर्ग , राजनांदगांव , पश्चिमी  रायपुर  तथा बस्तर  संभाग  में है।  इसके कण  महीन  तथा रेतीले  होते है।   इसमें नाइट्रोजन , ह्यूमस  तथा पोटाश की कमी पाई जाती है। 

* इसमें लाल हेमेटाइट  और पीले  लिमोनाइट होने के कारण  इसका रंग लाल होता  है। 

* इसमें लोहा , एल्युमिनियम  तथा  क्वाटर्ज के अंश  मिलते है।  दण्डकारण्य पठार पर  लाल  रेतीली मिट्टी पाई जाती है।  तथा इसकी उर्वरता  शक्ति कम होती है।  

* यह मिट्टी  मोटे अनाज ; जैसे  ज्वार  , बाजरा ,  कोदो  आदि  के लिए उपयुक्त है। 

 

 

 

 

 

 

****** 3.  लाल  दोमट  मिट्टी ******

 

* यह मिट्टी  दक्षिण - पूर्वी  बस्तर  जिले में पाई जाती है। यह राज्य के  लगभग  10 से 15 % क्षेत्र में पाई जाती  है।   इसका   निर्माण  नीस , डायोराइट  आदि  चीका प्रधान व अम्ल रहित चट्टानों से होता है। 

* लाल  दोमट  मिट्टी  राज्य के बस्तर  , बीजापुर , दंतेवाड़ा  और सुकमा  जिलों में  प्रमुखता से  पाई जाती है।  

* राज्य में इसका विस्तार  दंतेवाड़ा  व सुकमा  जिले में अधिक  है।  खरीफ के मौसम  में यहां  धान की खेती होती है।

* यह अम्लीय प्रकार की मिट्टी है  तथा  इसकी संरचना  छिद्रमय  एवं भंगुर प्रकार की है। 

* लौह  अयस्क  की मात्रा  अधिक  होने के कारण  इस मिट्टी  का रंग  लाल होता है।  

* इसमें बाजरा , तीसी  , दलहन , तम्बाकू  , गेंहू  आदि फसले  सिंचाई द्वारा उत्पादित  की जा सकती है।   

 

 

 

  ********* 4. लैटेराइट  मिट्टी  ******


* यह  मोटे कणो  एवं गोल  पत्थरो  से युक्त मिट्टी है। 

*  इसे स्थानीय  भाषा में  मुरुमी  तथा  भाठा  मिट्टी कहते है। 

* इसमें रेतीली मिट्टी  , कंकड़  , पत्थर आदि  होते है।   लाल शैलो  से  निर्मित  होने के कारण  इसका रंग लाल ईट  के समान होता है। 

* एल्युमिनियम  तथा  लोहे  की अधिकता  के कारण  यह  मिट्टी सूखने  पर कठोर  हो जाती है।  

* इस प्रकार की  मिट्टी  सरगुजा  के मैनपाट  पठार  के दक्षिण  भाग  तथा  उससे जुड़े  बिलासपुर , कोरबा , जांजगीर , बेमेतरा  एवं  बस्तर  संभाग  में जगदलपुर  के आसपास  पाई जाती है। 

* यह बहुत कम उपजाऊ मिट्टी है। यह भवन निर्माण के लिए उत्तम मानी जाती है।  यह मिट्टी कठोर होती है , जिसके कारण  यह  ईट  निर्माण में उपयोगी  होती है। 

* लौह  आक्साइड  के कारण  इस मिट्टी  का  रंग  जंग के रंग की भांति  या लालपन  लिए होता है।  इसका ph  मान 7 होता है। 

* कोदो  और कुटकी , बाजरा  और ज्वार  जैसी मोटी अनाज फसलों के  अतिरिक्त  आलू  , टमाटर , चाय  आदि बागवानी फसले  इस  मिट्टी  में  उत्पादित  होने वाली मुख्य फसले है।  

 

 

 

 

 

 

 

******* 5.  काली  मिट्टी  ******

 

* यह बारीक  कणो वाली काली ( रेगुर ) या गहरी भूरी  मिट्टी होती है। स्थानीय  लोग  इसे  भर्री , गाभार  या कन्हार  भी कहते  है।  इसमें चीका की मात्रा अधिक होती है। 

* काली  मिट्टी  नदियों  व मैदानों  के  विस्तृत  भागों ; जैसे  मुंगेली , बेमेतरा , राजनांदगांव , बिलासपुर , कबीरधाम , बालोद , धमतरी  आदि  में मिलती है। 

* यह पानी पड़ने पर चिपचिपी हो जाती है  तथा सूखने पर  इसमें  बड़ी  मात्रा में  दरारे  पड़ जाती है। 

* इस मिट्टी  में फेरिक  टाइटेनियम  की  उपस्थिति के कारण  रंग काला   होता है। 

* इस  मिट्टी का निर्माण  बेसाल्ट  चट्टानों  के अपरदन से हुआ है।  चिकनी मिट्टी में रन्ध्र  अधिक होता है , जिसके कारण  इसकी  जलधारण क्षमता  अधिक होती है। 

* इस मिट्टी में कई प्रकार के खनिज तत्व मिलते है।  इस प्रकार की मिट्टी में  एल्युमिना , सिलिका , लोहे के ऑक्साइड ,  चूने  तथा पोटाश  की अधिकता  होती है।  इसकी प्रकृति क्षारीय होती है। 

* इसमें नाइट्रोजन  , जीवाश्म  और फास्फोरस  की  कमी होती है।  इसका ph  मान  7 -8  होता है। 

* इस मिट्टी  की जलधारण  क्षमता  सबसे  अधिक  है तथा चीका  की मात्रा ( चूने  की  अधिकता ) अधिक पाई जाती है। 

* यह  मिट्टी  गेंहू  , चने , कपास  व गन्ने  की  खेती  के लिए  सर्वाधिक  उपयुक्त है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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