Friday 31 July 2020

छत्तीसगढ़ में पशुपालन , Animal husbandry of chhattisgarh , chhattisgarh me pashupalan , cgpsc


 



 छत्तीसगढ़ ग्रामीण एवं किसानों से संबंधित योजनाएं , Chhattisgarh gramin avm kisano se sambandhit yojnayen, scheme for farmer ,cgpsc

 ****छत्तीसगढ़ में पशुपालन *****


 

 

*  छत्तीसगढ़ में अधिकतर देशी नस्ल का पशुधन  मिलता है, जो अपेक्षाकृत कद में छोटा तथा दूध कम देने वाला होता है।  

*  ग्रामीण लोग निम्न श्रेणी के पशुधन को दुग्ध  के लिए कम तथा गोबर खाद की प्राप्ति के लिए अधिक रखते है।  

*  छत्तीसगढ़ के अधिकांश ग्रामीण परिवारों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन है।  

*  वर्ष  2012  की नई पशु संगठन के अनुसार ,प्रदेश में   1 . 50  करोड़  पशुधन तथा 1 . 80  करोड़ कुटकुट  एवं बत्तख  पक्षी है।  

 

 

 

  १.    पशुपालन विभाग  *****

 

* पशुपालन  एवं चिकित्सा सेवा विभाग ,पशु उपचार ,रोकथाम ,गर्भधान ,बघियाकरण  एवं विभाग द्वारा संचालित  अन्य समस्त योजनाओं , जैसे  कुक्कूट   पालन ,पशुचारा  विकास  तथा  उत्पादन ,पशु  स्वास्थ्य  संवर्द्धन  एवं  दुग्ध  विकास  के कार्यक्रमों  को  संयोजित  व  क्रियान्वित  करता है।  

 

 * कृत्रिम गर्भधारण हेतु तरल नत्रजन संयंत्रों  की स्थापना राज्य के विभिन्न भागो में की गई है।  

* राज्य  में पशुओं के विकास एवं उनसे संबंधित योजनाओं  का क्रियान्वयन  छत्तीसगढ़  पशुपालन ,डेयरी  एवं मत्स्य पालन  मंत्रालय  द्वारा किया जाता है। 

 

 

  २.    पशु बाजार *******

 

*  छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक संख्या गायों की है।  बैलो की जोड़िया  व दुधारू  भैंसो की अच्छी नस्लें  राजस्थान  तथा मध्य प्रदेश  से राज्य में आयात  की जाती है।  राज्य का प्राचीनतम  पशु बाजार  रतनपुर ,जिला  बिलासपुर  में लगता है।  

  

 

 

 

*  राज्य का सबसे बड़ा पशु बाजार रायपुर  स्थित भैंसथान  है, जो डेयरी होने के साथ -साथ  गाय -भैंस  क्रय -विक्रय  का केंद्र  भी है।  इस बाजार में हरियाणा ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश एवं पंजाब से पशु विक्रय हेतु आते है। 

 

 

 

 

*  यहां किरवई  मवेशी  बाजार का बड़ा महत्व है।  इसके अंतर्गत भाटापारा ,मुंगेली ,बेमेतरा ,बिलासपुर ,कवर्धा  के कृषको  के लिए  पशु क्रय -विक्रय  के लिए बाजार  उपलब्ध कराया जाता हैं।  यह लगभग  150 वर्ष पुराना  बाजार है।  

 

 

  ३.    छत्तीसगढ़ राज्य पशुधन  विकास अभिकरण ****

 

                                  छत्तीसगढ़ राज्य  में पशु संवर्द्धन की राष्ट्रीय  गौवंशीय - भैसवंशीय  पशु प्रजनन परियोजना के संचालन एवं नियंत्रण  हेतु राज्य सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य पशुधन विकास अभिकरण की स्थापना जून  ,2001  में की गयी।  

 

 * परियोजना  के अंतर्गत मुख्य उपलब्धियां निम्नानुसार है :-

*  पशु संवर्द्धन कार्य हेतु आवश्यक  हिमीकृत वीर्य  का उत्पादन राज्य में सुनिश्चित करने के लिए फ्रोजन सीमन  बुल स्टेशन अंजोरा  (दुर्ग ) में स्थापित किया गया है।  

 

* कृत्रिम गर्भाधान  पहुंच विहीन गावों में गर्भाधान  व्यवस्था  सुनिश्चित करने हेतु उन्नत किस्मों  के सांडो  को प्रदान  किया जा रहा है। 

 

* कृत्रिम  गर्भधारण  कार्य हेतु आवश्यक  तरल नत्रजन  प्रदाय  एवं भंडारण  व्यवस्था का  सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है।  

 

* गुणवत्ता परीक्षण उपरांत हिमीकृत वीर्य प्रदाय व्यवस्था  सुनिश्चित  करने के लिए  वीर्य  संग्रहालयों का सुदृढ़ीकरण  किया जा रहा है।  

 

*  पशु नस्ल  में आवश्यक सुधार  हेतु आवश्यक  सुधार  हेतु आवश्यक  सूचना  तंत्र  के सुदृढ़ीकरण के लिए चरवाहों  को प्रशिक्षित  किया जा रहा है।  

 

*  प्रशिक्षित  केंद्र  महासमुंद  व जगदलपुर  में प्रशिक्षित  सुविधा हेतु आवश्यक  अधोसंरचना  विकसित की गई है।   

 

 

 

 ४.    छत्तीसगढ़  सहकारी  दुग्ध  महासंघ *****

 

* छत्तीसगढ़  में रायपुर  दुग्ध संध  एकमात्र  सहकारी दुग्ध  संघ  है ,जिसका  पंजीकरण  वर्ष 1983  में हुआ था। यह एक स्वायत्तशासी  निकाय  है , जिसका नियंत्रण  कृषि उत्पादन  आयुक्त  द्वारा किया जाता है।  इसका प्रशासन पूरे राज्य  में है।  

 

* छत्तीसगढ़ में राज्य सहकारी दुग्ध संघ का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रो के दुग्ध उत्पादकों को दुग्ध का उचित मूल्य प्रदान करना है।  राज्य सहकारी  संघ द्वारा राज्य में वर्ष 2011 से देवभोग  नामक ब्रांड  दूध उपलब्ध कराया जा रहा है।  

 

*  दुर्ग राज्य  का सबसे बड़ा दुग्ध  उत्पादन  वाला जिला है।  

 

 

 

 

 

 ५.     कुक्कुट  पालन ***** 

 

*  छत्तीसगढ़  में पशु संगणना  2012  के अनुसार , प्रदेश में 1. 80  करोड़  कुक्कुट  एवं बत्तख  पक्षी  है।  प्रदेश में 7 कुक्कुट  एवं 2 बत्तख  पालन प्रक्षेत्र  स्थापित है।  

 

 

* इन प्रक्षेत्रों  में बैकयार्ड  कुक्कुट इकाई वितरण योजनान्तर्गत  अनुसूचित  जाति  एवं अनुसूचित जनजाति  के हितग्राहियों  को रंगीन  चूजों के वितरण  के साथ  आहार एवं औषधि  घर पहुंचाई  जाती है।  

 

 

 

 ६.    मत्स्य  पालन *****

  

 

 

*  छत्तीसगढ़ में उपलब्ध जल संसाधन मत्स्य पालन की दृष्टि  से एक विशिष्ट  स्थान रखता है।  छत्तीसगढ़ राज्य में कूल 1 . 665 लाख  हेक्टेयर  जल क्षेत्र उपलब्ध है।  जिसमे से 1 . 572  लाख हेक्टेयर मछली पालन के अंतर्गत  विकसित  किया जा चुका है ,जो कुल जल क्षेत्र का 94 . 41 % है।  

 

*  यह ग्रामीण क्षेत्रो  की बेरोजगारी  दूर करने का सशक्त  एवं रोजगारोन्मुखी  साधन  है। यह कम लागत ,कम समय में सहायक  कार्य के रूप में ग्रामीण अंचलो में अत्यंत  लोकप्रिय  है।  

 

* राज्य  में मत्स्य पालन एवं योजनाओं की देखरेख मत्स्य  मंत्रालय  करता है।   विभाग  ने मत्स्य पालन को प्रोत्साहिट  करने हेतु  बिलासा  बाई केवटिन  श्रेष्ट  मत्स्योत्पादक  पुरस्कार  स्थापित  किया है।  

 

* इसके अंतर्गत  राज्य सरकार  द्वारा 1  लाख रु  का पुरस्कार  दिया जाता है।  

 

* वर्ष 2016 -17 में यह पुरस्कार  बघेल  (दुर्ग ) के श्री  सानेन्द्र  कुमार  को प्रदान  किया गया।  

 

* छत्तीसगढ़ मत्स्य  बीज आपूर्ति   में आत्मनिर्भर  है।  मत्स्य   पालन  के लिए रायपुर  में राजकीय  प्रयोगशाला  स्थापित की गई।  

 

मत्स्य  पालन  को बढ़ावा देने हेतु सरकार  के प्रयास  निम्न है :-

*  मत्स्य विश्वविद्यालय  वर्ष 2010 -11  में कबीर धाम  में खोला गया।  मछली पालकों को कल्याण और विकास के लिए मछुआ  कल्याण बोर्ड  बनाया गया है।  

 

* वर्ष  2010 - 11 में केज  की स्थापना की गई है ,यह मत्स्य  उत्पादन में वृद्धि लाने की एक योजना है।  केज राष्ट्रीय प्रोटीन  परिपूरक  योजना के अंतर्गत स्थापित  की गई है।  

 

* राजकीय  मत्स्य और अनुसंधान  केंद्र  रायपुर  केतेली  बांधा  में स्थापित  किया गया है।  दंतेवाड़ा में मत्स्यिकी  महाविद्यालय  स्थापित है।  अधिकांश  मछली उत्पादन  केंद्र दुर्ग जिले में स्थित है।  

 

* विलुप्त  मछलियों  के संवर्द्धन  एवं संरक्षण  के लिए  बिलासपुर ,दुर्ग  और कोरबा  में कैट  फिश  हैचरी  का निर्माण   किया गया है।  मछलियों  की लगभग   65 %  प्रजातियां महानदी में पाई  जाती है।  

 

* देश का पहला  अंतर्देशीय  मीठा जल  झींगा  हैचरी छत्तीसगढ़ में स्थापित किया गया है।  

 

*  मांगुर  मछली को बचाने के  लिए  रायपुर  में परियोजना  चलाई  जा रही है।  

 

 

 ७.    मत्स्य महासंघ *****

*  इसकी स्थापना वर्ष  1996 में हुई।  मत्स्य विकास निगम के कार्यों पर  नियंत्रण  रखने एवं जिला मत्स्य  संघों  के अंतर्गत आने वाली  सहकारी  समितियों  पर नियंत्रण रखने हेतु  इसकी स्थापना  की गयी।               

छत्तीसगढ़ की खनिज सम्पदा , Minerals of chhattisgarh , cg ki khanij smpada , cgpsc

****छत्तीसगढ़ की खनिज सम्पदा Minerals of chhattisgarh,

                   

 

                                     छत्तीसगढ़ क्षेत्र में मूल्यवान महत्वपूर्ण औद्योगिक खनिज पाए जाते हैं। इन खनिजों के कारण ही भिलाई ,कोरबा।, बैलाडीला क्षेत्र का औद्योगिक विकास संभव हुआ हैं।  खनिजों से प्राप्त राजस्व एवं सकल खनिजों के उत्पादन मूल्य की दृष्टि से इस क्षेत्र द्वारा 46. 9 एवं 44. 5 का योगदान दिया जा रहा हैं।  छत्तीसगढ़ क्षेत्र में लगभग 12 खनिजों का दोहन किया जा रहा हैं।  इसमें सबसे प्रमुख कोयला  है , द्वितीय स्थान पर लौह अयस्क , तृतीय स्थान पर चूना पत्थर एवं चतुर्थ स्थान पर डोलोमाइट खनिज हैं।  

 

म. प्र. के कोयला उत्पादन में 47. 4 ,डोलोमाइट में 70. 1 चूना पत्थर के उत्पादन में 44. 4 तथा बाक्साइड के उत्पादन में 20. 3 सहयोग देने का श्रेय छत्तीसगढ़ क्षेत्र को प्राप्त हैं।  

छत्तीसगढ़ क्षेत्र में उत्पादित हो रहे मुख्य खनिजो के बारे में यहां पर संक्षिप्त जानकारी निम्नानुसार दी जा रही है।  

 

 

 

१.   कोयला 

             कोयला खनिज ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत हैं।  इस अंचल में बिलासपुर ,सरगुजा ,रायगढ़ जिलों में कोयले के भंडार है।  बिलासपुर जिले में प्रमुख कोयला की खदाने कोरबा क्षेत्र में हैं।  सरगुजा जिले में चिरमिरी और विश्रामपुर में कोयला क्षेत्र मुख्य रूप से है।  रायगढ़ जिले के अंतर्गत रायगढ़ का दक्षिणी भाग और मांड नदी के पास प्रमुख कोयला की खदाने हैं।  वर्तमान में इन जिलों में पाए जाने वाले कोयले का उत्पादन मैसर्स साऊथ ईस्टर्न कोल्ड फील्ड लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है।  जो की कोल्ड इण्डिया लिमिटेड की इकाई है।  इस क्षेत्र के कोयले का उपयोग प्रमुख रूप से   विधुत संयंत्रो , सीमेंट रिफेक्टरी तथा अन्य उद्योगों में किया जाता है।  

 

 

 

 

२.      लौह अयस्क 

            अंचल के उच्च श्रेणी लौह अयस्क के विशाल भंडार दुर्ग जिले में दल्लीराजहरा की पहाड़ियों तथा बस्तर में बैलाडीला के पहाड़ो में उपलब्ध है। मैमर्स राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा बैलाडीला लौह अयस्क परियोजना बस्तर में संचालित है।  यहां से लौह अयस्क का निर्यात मुख्य रूप से जापान में किया जाता है।  दुर्ग जिले में उपलब्ध लौह अयस्क भंडारो का उपयोग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा उपयोग में लाया जाता है।  इसके अतिरिक्त बस्तर के रऊघाट परिक्षेत्र तथा राजनांदगांव जिले के बोरियाटिम्बू क्षेत्र में लौह अयस्क के भंडार उपलब्ध होने की संभावना का पता चला है।  

 

 

 

३.     डोलोमाइट 

          उच्च श्रेणी का डोलोमाइट बिलासपुर ,दुर्ग तथा बस्तर क्षेत्र में पाया जाता है।  बिलासपुर जिले के डोलोमाइट का उपयोग भिलाई ,राउरकेला  तथा बोकारो  स्थित लौह एवं इस्पात संयंत्र में किया जाता है।  

 

 

 

 

४.     बाक्साइट

             इस अंचल में बाक्साइट के भंडार बिलासपुर , सरगुजा ,रायगढ़ ,बस्तर तथा राजनांदगांव जिलों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।  बिलासपुर जिले के बाक्साइट का उपयोग कोरबा स्थित भारत एल्युमिनियम द्वारा किया जाता है।  बस्तर जिले के केशकाल क्षेत्र में पाए जाने वाले बाक्साइट का उत्खनन म. प्र. राज्य खनिज निगम द्वारा किया जा रहा है।  

 

 

 

 

 

 

 

५.    सोना 

               छत्तीसगढ़ में ऐसी अनेक नदियां है। जिसके बालू में काफी मात्रा में स्वर्ण कण पाए जाते है।  इसका मुख्य कारण है कि ये नदियां स्वर्ण युक्त चट्टानों को कही न कही काटते हुए गुजरती है और अपने साथ सोने के कण बालू में अपने साथ बहाकर ले जाती है।  इन नदियों में प्रमुख रूप से दुर्ग जिले में आमोर नदी और राजनांदगांव में ईब नदी है।  स्वर्ण के प्राचीन उत्खनन के चिन्ह भी सोना खान क्षेत्र में दृष्टिगत  होते है।  

 

 

 

६.    मैंगनीज 

         बिलासपुर और सरगुजा जिले में तथा बस्तर संभाग में मैंगनीज अयस्क प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।  इसके कई भंडार यहां पर पाए जाते है।  

 

 

 

 

७.   हीरा 

               खनिजों में सबसे बहुमूल्य हीरा 1993 -94 ई. में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के अंतर्गत मैनपुर व देवभोग क्षेत्र में पाया जाता है।  यहाँ किंबरलाइट चट्टानों की खोज की गयी।  यहां पांच पाइप मिले है ,जिनमे हीरा और एलेक्जेंडर प्रचुर मात्रा में बतायी गई है।  जगदलपुर में छत्तीसगढ़ का पहला रत्न परिष्करण केंद्र स्थापित किया गया है।  जिसमे रत्नो को तराशने ,पालिश ,कटिंग आदि के कार्यो का प्रशिक्षण दिया जाता हैं। 

 

 

 

 

 

८.   कोरंडम 

        छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में कोरंडम अयस्क भी प्रचुर मात्रा है।   हीरे के बाद कोरंडम कठोरता की दृस्टि से श्रेष्ट व मूल्यावान खनिज में इसकी भी गिनती की जाती है।  

 

 

 

 

 

९.   चूने का पत्थर 

         छत्तीसगढ़ परिक्षेत्र में चूने के पत्थर की बहुतायत है।  कड़प्पा युग का चूने का पत्थर बिलासपुर जिले के दर्रा ,अकलतरा ,पिहरी बरसमेरा और मोहगारा में अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध है।  जहा इसका उत्खनन किया जाता है।  रायपुर में गैतरा ,सोनाडीह ,झिपन ,करहीडीह और दुर्ग के नंदगाव के निकट खलवा से अर्जुनी तक चूने के विशालतम भण्डारो के विषय में जानकारी उपलब्ध है तथा उस पर उत्खनन कार्य किया जा रहा हैं।  

 

 

 

 

 

 

 

 

१०. अलेक्जेंड्राइट 

      छत्तीसगढ़ परिक्षेत्र में अन्य अयस्क व बहुमूल्य धातुओं की भाति यह बहुमूल्य दुर्लभ पत्थर रायपुर जिले में मैनपुर , देवभोग तहसील में पाए जाते है।  रायपुर क्षेत्र के संदमुड़ा में इसके प्रचुर भंडार उपलब्ध हैं।  

 

 

 

 

 

११.    गेरू 

     गेरू आक्साइड के रूप में पाया जाता है।  यह पीले  व लाल रंग का होता है।  इसमें क्ले की मात्रा अधिक होती है।  सरगुजा , रायगढ़ ,राजनांदगाव जिले में इसके पर्याप्त भंडार उपलब्ध है।  

 

 

 

 

१२.   तांबे के अयस्क 

           तांबा अपने अयस्क सल्फाइट के रूप छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।  अन्य तांबे के अयस्क कार्बोनेट ,मेकेलाइट ,एजुराईटहै।  जो यहाँ की भूमि में उपलब्ध हैं।  इसके मुख्य भंडारण क्षेत्र बिलासपुर ,राजनांदगांव ,रायगढ़ और बस्तर जिले में स्थित हैं।  

 

 

 

 

 

अन्य खनिज

           

           कोकणम ,स्फटिक ,सिलिका ,एस्बेस्टस ,माइका ,केसीटेराइट,राक ,फास्फेट ,सीसा ,अयस्क ,बेरिल ,अभ्रक ,फ्लोराइट ,सिलीमेनाइट  की भी खदाने छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।                                            

        

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