Monday 3 August 2020

छत्तीसगढ़ की प्रमुख शिल्प कलाएँ ,Sculptural art of chhattisgarh, chhattisgarh ki shilp kala , cgpsc

 *****छत्तीसगढ़ की प्रमुख शिल्प कलाएँ *****


 

 

छत्तीसगढ़ की प्रमुख शिल्प कलाएं  मिट्टी शिल्प ,कंघी कला ,बांस शिल्प ,पत्ता कला , धातु कला ,घड़वा  कला  , लौह  शिल्प  आदि है।  

 

मिट्टी शिल्प ******

 * मिट्टी में बस्तर  के शिल्पियों  द्वारा अत्यंत  सुंदर ,कलात्मक ,बारीक  अलंकार  का कार्य किया जाता है।  

* इस कारण बस्तर का मिट्टी शिल्प सबसे अलग पहचान रखता है।  रायगढ़ ,सरगुजा ,राजनांदगांव  आदि  के मिट्टी  शिल्प  अपनी -अपनी निजी  विशेषताओं  के कारण  महत्वपूर्ण  स्थान रखते है।  

* मिट्टी  के शिल्प  में मटका ,मटकी ,पोला ,नन्दी ,हाथी सुराही ,चकिया ,कलसा तथा कसेली  आदि है।  

 

 

 

 

 

 

काष्ठ  शिल्प ******

* बस्तर में मूर्तियां ,देवी -झूले ,तीर -धनुष  आदि  में सुंदर  बेल -बूटों  के साथ  पशु -पक्षियों  की आकृति  अंकित  की जाती है।  

 * कोरकू  के मृतक  स्तम्भ  और सरगुजा की अनगढ़  मूर्तियां  भी काष्ठ  कला के उत्कृष्ट  नमूने है।  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कंघी  शिल्प ********

* ग्रामीण  समाज में आमतौर पर  आदिवासी  समाज में विशेष तौर पर  अनेक  प्रकार की  कंघियो  का प्राचीनकाल से ही प्रयोग  होता आ रहा है।  

* बस्तर  की जनजातीयों में यह कला सबसे अधिक  प्रचलित  है।  

* बजरा  व मुड़िया  जनजाति  कंघी  कला  के  लिए  सबसे अधिक प्रसिद्ध है। 

 

 

 

बांस  शिल्प *******

* बांस से बनी कलात्मक  वस्तुएँ  सौंदर्यपरक  और जीवनोपयोगी  भी होती है ,इसलिए बांस  शिल्प  का महत्व  जीवन में और अधिक  बढ़ जाता है।  

* इस कला  द्वारा  मुख्य  रूप से टुकना ,सूप ,टोकरी  आदि  बनाए  जाते है।  

* इनके  अतिरिक्त  सुंदर कलाकृतियां ; जैसे - गुलदस्ता ,कुर्सियां ,लैम्प रोड ,पेन होल्डर  आदि  भी बनाये  जाते है।  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पत्ता शिल्प ********

* पत्ता शिल्प  के कलाकार  मूलतः  झाड़ू बनाने वाले होते है।  पेड़ -पौधों में विभिन्न  आकारों  में मिलने  वाले पत्तों  के प्रति  मनुष्य  का मन  आदिकाल से ही आकर्षित  रहा है।  

* छींद  के पत्तों से कलात्मक  खिलौने ,चटाई  ,आसन ,दूल्हा -दुल्हन  के मोढ़  आदि बनाए  जाते है। 

* सरगुजा  रायगढ़ ,बस्तर  ,राजनांदगांव  पत्ता शिल्प  के प्रमुख केंद्र है।  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

धातु शिल्प ********

* बस्तर  ,सरगुजा  और रायगढ़  जिलों  में धातु  का काम  करने वाली  जातियां  है।  बस्तर में  घड़वा ,सरगुजा में  मलार  नामक जाति  तथा रायगढ़  जिले  में झारा   धातु  मूर्ति कला के लिए  विख्यात है।  

 

 

 

 

 

 

 

 

घड़वा  शिल्प **********

* बस्तर  में निवास  करने वाली  घड़वा जनजाति घड़वा शिल्प  कला के लिए  प्रसिद्ध है।  पीतल।  कांसा  और रांगा  से  बने  घड़वा शिल्प  बस्तर के आदिवासिओं  के देवलोक  से जुड़े  हुए  होने का प्रमाण  प्रस्तुत  करते है।  

* इसमें मोम -क्षय  पद्धति का उपयोग  होता है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

लौह  शिल्प ***********

* बस्तर  में मुरिया -माड़िया  आदिवासियों  के विभिन्न अनुष्ठानो  में लोहे  से बने स्तंभों  के साथ  देवताओं ,नाग और  पशु -पक्षियों  की  मूर्तियां  अर्पित  करने की परम्परा  है।  

* बस्तर में लौह  शिल्प  का कार्य  लोहार  जाति के लोग करते है ,जिनका यह पैतृक  व्यवसाय  है।  लौह  शिल्प  के क्षेत्र  में बस्तर  के  लोहार  अत्यंत  श्रेष्ठ शिल्पियों  में गिने  जाते है।  बस्तर  के कई  शिल्पकार  राष्ट्रीय  पुरस्कार प्राप्त कर चुके है।  

 

 

 

 

 

 

ढोकरा  शिल्प **********

* इस शिल्पकला  का प्रमुख  केंद्र  कोंडागांव  है।  

*  इस  शिल्पकला  के अंतर्गत  पहले  कलाकृतियों  को मोम  के द्वारा तैयार किया जाता है , इसके पश्चात  इसे  पकाकर  इसके अंदर  पिघली  हुई  पीतल  धातु  को डाला  जाता है।  

 

* देवी -देवताओं , हाथी ,घोड़े ,बैल  व अन्य  सजावटी  समान  इस  शिल्पकला  द्वारा तैयार किए जाते है। 

* कोंडागांव  के  अतिरिक्त  बस्तर  व रायगढ़  में  भी यह  शिल्पकला  अधिक प्रचलित  है।  

*  छत्तीसगढ़  को ढोकरा  शिल्प  कला विश्व  स्तर  पर प्रसिद्द है।                

















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